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<H2> उत्तराखंड में चैत के महीने गाई जाने वाली बीरू और जसी की प्रेमगाथा </H2> |
<H2> कोरोना के कारण उत्तराखंड का 73 साल पुराना सिनेमाघर अपने आखिरी शो के बिना बंद </H2> |
<H2> चैत्र के महीने में उत्तराखंड के तीज-त्यौहार और परम्परा </H2> |
<H2> बच्चे का पेट से निकल कर गोद तक पहुंचना मां के लिए कितना जानलेवा है </H2> |
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<H3> कहां गए नीले आसमान में उड़ने वाले गौरैया के झुण्ड </H3> |
<H3> साझा कलम : नामकरण का टेन्टीकरण </H3> |
<H3> साझा कलम : 12 सुनील कुमार </H3> |
<H3> साझा कलम : 11 प्रीति सिंह परिहार </H3> |
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<H3> साझा कलम: 9 पदमिनी अबरोल </H3> |
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<H3> सीमान्त से निकली पहली ग्रेजुएट महिला गंगोत्री गर्ब्याल </H3> |
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<H3> साझा कलम – 2 – हेम पन्त </H3> |
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<H3> फूल बन कर खिलने वाली पर्वतपुत्री है फ्यूंली </H3> |
<H3> महाराष्ट्र के राजभवन में उत्तराखंड का लोक पर्व फूलदेई </H3> |
<H3> द्वार पूजा का पर्व भी है फूलदेई </H3> |
<H3> फुलदेई : बसंत-पुजारी पहाड़ी बच्चों की आस का पर्व </H3> |
<H3> पर्वतीय लोक जीवन में प्रकृति </H3> |
<H3> हम सब अपने बच्चों के हत्यारे हैं </H3> |
<H3> पांच बीघा लम्बे नाम का झंझट </H3> |
<H3> बुजुर्गों के दिल में बसता है पहाड़ </H3> |
<H3> बेटे की चाहत का नशा भी न जाने कितने घर उजाड़ देता है </H3> |
<H3> उत्तराखंड के कवि पार्थसारथी डबराल का जन्मदिन है आज </H3> |
<H3> पहाड़ की लड़कियों का पहाड़ सा जीवन </H3> |
<H3> हमारे टैम पर तो अणकस्सै होने वाला ठैरा ‘वैलेन्टाइन डे’ </H3> |
<H3> बीबीसी की तिलिस्मी आवाज़ वाली रेडियो सेवा का अंत </H3> |
<H3> हिट तुमड़ि बाटे-बाट, मैं कि जानूं बुढ़िया काथ : कुमाऊं की एक लोकप्रिय लोककथा </H3> |
<H3> कल्पनीय सच का विधान : चंदन पांडेय के उपन्यास ‘वैधानिक गल्प’ के बहाने ‘आज’ से जिरह </H3> |
<H3> ऐसी भी होती है एक बस यात्रा की दास्तान </H3> |
<H3> कुमाऊँ-गढ़वाल में बाघ के बच्चे को मारने का दो रुपये ईनाम देती थी क्रूर अंग्रेज सरकार </H3> |
<H3> पंचेश्वर बांध से आशंका में रिवर गाइड और टूर ऑपरेटर्स </H3> |
<H3> पानी के नए गुणों की खोज </H3> |
<H3> उत्तराखण्ड की अजिता बिष्ट को मिसेज सिंगापुर का टाइटल </H3> |
<H3> कुमाऊनी परिधान में भारतीय टेलीविजन की स्टार एक्ट्रेस </H3> |
<H3> आज की पीढ़ी को लकी अली को क्यों सुनना चाहिए </H3> |
<H3> रूप दुर्गापाल: अल्मोड़ा की बेटी का भारतीय टेलीविजन स्टार बनने का सफर </H3> |
<H3> एक कटी फटी परियोजना बन कर रह गया सेक्रेड गेम्स सीजन 2 </H3> |
<H3> हल्द्वानी से ताल्लुक रखती है सिनेमा की यह उभरती हुई अभिनेत्री </H3> |
<H3> दो लफ़्ज़ों की है दिल की कहानी </H3> |
<H3> पांच पुरानी हिन्दी फ़िल्में जिनकी शूटिंग नैनीताल में हुई थी </H3> |
<H3> साहिर लुधियानवी का गीत जिसमें मोहब्बत जैसे नाजुक विषय पर खुलेआम शास्त्रार्थ है </H3> |
<H3> तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे </H3> |
<H3> एक मोहब्बतनामा हल्द्वानी से – 24 </H3> |
<H3> क्या उत्तराखण्ड में कांग्रेस पार्टी खत्म होने की कगार पर है </H3> |
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<H3> क्या बदल जायेंगे उत्तराखण्ड के सीएम </H3> |
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<H3> मोबाइल फोन की गिरफ्त में मासूमों का बचपन </H3> |
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<H3> सरकार हरेला को उत्तराखंडी पर्यावरण दिवस बनाने को अग्रसर है </H3> |
<H3> जड़ी-बूटियों का गढ़ है उत्तराखंड </H3> |
<H3> भीषण जल संकट से निपटने के उपाय जरूरी हैं </H3> |
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<H4> भिटौली : भाई-बहिन के प्यार का प्रतीक </H4> |
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<H4> अद्भुत है मां पूर्णागिरी धाम की यह कथा </H4> |
<H4> अब होली जैसी होली नहीं बची पहाड़ों में </H4> |
<H4> शिक्षा जगत का बैल और खेतों का विद्यार्थी उर्फ़ भैया जी </H4> |
<H4> ओएशडी सैप कह लो चाहे निजी शचिव कह लो – नीश हर जगह होने वाले हुए उत्राखंड में </H4> |
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<H4> बसंत के इस्तकबाल का त्यौहार है फूलदेई </H4> |
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<H4> पर्वतीय लोक जीवन में प्रकृति </H4> |
<H4> कल है फूलदेई का त्यौहार </H4> |
<H4> पहाड़ की होली में आज भी परंपरागत सुगंध महसूस की जा सकती है </H4> |
<H4> बुजुर्गों के दिल में बसता है पहाड़ </H4> |
<H4> लेबर पेन के दर्द से मुक्ति के लिए मैं मरना भी मंजूर कर लेती </H4> |
<H4> नये अंदाज में कुमाऊनी होली शिव के मन मा ही बसे काशी </H4> |
<H4> कुमाऊं में होली की विधाएं </H4> |
<H4> फारेस्ट गार्ड भर्ती घोटाला : धरने पर बैठे छात्रों के साथ पुलिस की अभद्रता </H4> |
<H4> वीणापाणि जोशी: कलम-कुटली वाली प्रकृतिप्रेमी कवयित्री का जाना </H4> |
<H4> ब्रिलियंट माइंडेड सीनियर </H4> |
<H4> गांव की चौपाल पर टीवी </H4> |
<H4> उत्तराखंड के बजट में मेधावी बच्चे क्यों ढूंढ रहे हैं लैपटॉप और स्मार्टफोन </H4> |
<H4> उत्तराखण्ड से इंडोनेशिया यात्रा की बेहतरीन तस्वीरें </H4> |
<H4> स्थानीय फूलों से रंग बनाकर पिथौरागढ़ के युवा आजीविका और प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा दे रहे हैं </H4> |
<H4> अब गैरसैंण के सहारे उत्तराखण्ड के सीएम </H4> |
<H4> बेटे की चाहत का नशा भी न जाने कितने घर उजाड़ देता है </H4> |
<H4> ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाकर सरकार ने भगत सिंह की ‘काले अंग्रेजों के राज’ वाली बात पर मुहर लगा दी </H4> |
<H4> उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण घोषित </H4> |
<H4> मुनस्यारी के लोगों ने बैंककर्मी को रिटायरमेंट वाले दिन घोड़े पर बैठा पहुंचाया घर </H4> |
<H4> नींद में भी दूध पीने की कला में बच्चे माहिर होते हैं </H4> |
<H4> शहीद के आखिरी शब्द: जोशी तैयारी करो, मैं रोज़ा आपके पास ही तोड़ूंगा </H4> |
<H4> अभी और कितने दिन मुख्यमंत्री बने रहेंगे त्रिवेंद्र सिंह रावत </H4> |
<H4> वसंत के मौसम में बिनसर </H4> |
<H4> पहाड़ी महिलाओं के जीवन का ज्यादातर हिस्सा लकड़ी, घास, पानी सारने में बीतता है </H4> |
<H4> उत्तराखण्ड की प्रियंका बनीं नेशनल यूथ बास्केटबॉल टीम की कोच </H4> |
<H4> हिमालय की कठिन चढ़ाई के दौरान बुजुर्गों द्वारा सूखी लाल मिर्च खाने का किस्सा </H4> |
<H4> लॉरी बेकर का बर्मिंघम से पिथौरागढ़ के चंडाक तक का सफ़र : जन्मदिन विशेष </H4> |
<H4> ॐ अग्नये स्वाहा, इदं अग्नये इदं न मम </H4> |
<H4> गांव का वह बचपन बहुत याद आता है </H4> |
<H4> भयो बिरज झकझोर कुमूँ में : कुमाऊं की 205 होलियों का अद्बभुत संग्रह </H4> |
<H4> उत्तराखंड का रघुनाथ मंदिर : रावण वध के बाद जहां भगवान राम ने तप किया </H4> |
<H4> समय विनोद : उत्तराखंड क्षेत्र से हिंदी में प्रकाशित होने वाला पहला समाचार पत्र </H4> |
<H4> शिक्षामंत्री और पेपर लीक की कहानी </H4> |
<H4> भिटौली : भाई-बहिन के प्यार का प्रतीक </H4> |
<H4> उत्तराखंड में चैत के महीने गाई जाने वाली बीरू और जसी की प्रेमगाथा </H4> |
<H4> अरुण यह मधुमय देश हमारा </H4> |
<H4> कोरोना के कारण उत्तराखंड का 73 साल पुराना सिनेमाघर अपने आखिरी शो के बिना बंद </H4> |
<H4> चैत्र के महीने में उत्तराखंड के तीज-त्यौहार और परम्परा </H4> |
<H4> भीमताल का फ्रेडी सैप </H4> |
<H4> “इन पेड़ों को काटने से पहले तुम्हें अपनी कुल्हाड़ियाँ हमारी देहों पर चलानी होंगी!” </H4> |
<H4> माय नेम इज़ एंथनी गोंसाल्वेज़ </H4> |
<H4> शैक्षणिक संस्थानों में बनेंगे ‘एंटी ड्रग क्लब’ : उच्च न्यायालय का आदेश </H4> |
<H4> दर्शनशास्त्र, फुटबॉल और कामू के फटे जूते </H4> |
<H4> उसके चारों ओर एक शून्य विस्तार पाता जा रहा है </H4> |
<H4> एक मोहब्बतनामा हल्द्वानी से – 26 </H4> |
<H4> मेरे भीतर से जन्मा बच्चा </H4> |
<H4> काली नदी की नरभक्षी मछली और चिता से तीन बार वापस आये नेपाली बुबू का किस्सा </H4> |
<H4> कुटी गाँव और वहाँ के लोगों की तस्वीरें </H4> |
<H4> गिर्दा का एक इंटरव्यू जिसे जरूर पढ़ा जाना चाहिये </H4> |
<H4> दारमा से व्यांस घाटी की एक बीहड़ हिमालयी यात्रा – 17 </H4> |
<H4> जंगलों में गांव की भागीदारी बनी ही रहनी चाहिए </H4> |
<H4> उत्तराखंड में लोगों के लिये दलित हत्या कोई बड़ी बात नहीं है </H4> |
<H4> तराई-भाबर की लीची न खाई तो क्या खाया </H4> |
<H4> कुमाऊनी लोकोक्तियाँ – 68 </H4> |
<H4> लिंगुड़ा: बरसात के मौसम की स्वादिष्ट पहाड़ी सब्जी </H4> |
<H4> माय नेम इज़ एंथनी गोंसाल्वेज़ </H4> |
<H4> तूतू – मैंमैं </H4> |
<H4> बच्चों के हर्ष व उल्लास का त्यौहार है फूलदेई </H4> |
<H4> भिटौली : भाई-बहिन के प्यार का प्रतीक </H4> |
<H4> उत्तराखंड में चैत के महीने गाई जाने वाली बीरू और जसी की प्रेमगाथा </H4> |
<H4> अरुण यह मधुमय देश हमारा </H4> |
<H4> कोरोना के कारण उत्तराखंड का 73 साल पुराना सिनेमाघर अपने आखिरी शो के बिना बंद </H4> |
<H4> चैत्र के महीने में उत्तराखंड के तीज-त्यौहार और परम्परा </H4> |
Social
Social Data
Cost and overhead previously rendered this semi-public form of communication unfeasible.
But advances in social networking technology from 2004-2010 has made broader concepts of sharing possible.